ACACU खंडवा – मध्य प्रदेश के खंडवा शहर के एक नागरिक ने 17 साल तक कई जगह लड़ाई लड़ने के बाद आखिर सफलता हासिल की है दरअसल,एक दंपती ने दो बेटियों के स्वास्थ्य की चिंता करते हुए मोबाइल कंपनी से 17 साल तक कानूनी लड़ाई लड़ी। उन्हें डर था कि घर के पड़ोस में लगे मोबाइल टॉवर से निकलने वाले रेडिएशन उनकी छोटी-छोटी बेटियों के स्वास्थ्य पर असर डालेगा। इसीलिए टॉवर हटाने के लिए चार बार हाईकोर्ट के दरवाजे खटखटाए। इस बीच उन्हें मोबाइल कंपनी के अधिकारियों की धमकियों का भी सामना करना पड़ा। अवैधानिक तरीके से लगाए गए टॉवर को हटाने के लिए वैधानिक लड़ाई लड़ी। हाईकोर्ट ने आदेश दिया कि कंपनी टॉवर हटाए और उस साइट के फोटो जमा करें। जिससे स्पष्ट हो जाए कि टॉवर पूरी तरह से हटा दिया गया है। आदेश के बाद
गुरुवार को टॉवर हटा लिया गया है। प्रदेश में मोबाइल टॉवर हटाने का यह पहला फैसला है जिसमें हाईकोर्ट ने टॉवर हटाकर मौके का फोटो सत्यापन के लिए मांगा है।
परदेशीपुरा निवासी राजेंद्र तिवारी ने बताया 1 वर्ष 2007 में मैंने बज नगर रहवासी इलाके में प्लाट लेकर करीब 80 लाख रुपए का मकान बनाया। पड़ोस में एक निजी भूखंड पर मोबाइल कंपनी ने टॉवर लगा दिया। मेरी दो बेटियों की उम्र महज 9 से 10 वर्ष थी। उनके स्वास्थ्य की चिंता थी। इसीलिए मैंने वर्ष 2008 में टॉवर हटवाने का फैसला लेते हुए कलेक्टर से शिकायत की लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। फिर लगातार सरकार से लेकर वन व पर्यावरण मंत्रालय, बिजली विभाग व नगर निगम के अधिकारी तक को शिकायत की गई। परंतु टॉवर हटने की उम्मीद नजर नहीं आई।
टॉवर की रीडिंग सबूत के रूप में पेश की तो हाई कोर्ट ने माना टॉवर चालू है..
टॉवर हटाते कर्मचारी।
तिवारी ने बताया टॉवर हटाने के लिए प्रशासनिक
अफसरों के चक्कर काटता रहा। 2008 से 2023 तक कई कलेक्टर आए गए लेकिन हाई कोर्ट के आदेश मिलने के बाद भी कभी कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए। एक-दो बार नहीं 4 बार जबलपुर हाईकोर्ट गया। दो बार फैसले मेरे पक्ष में आए और नियम
40 मीटर ऊंचे टॉवर से खंडवा ही नहीं खरगोन, सतवास, खातेगांव व बुरहानपुर तक मोबाइल का नेटवर्क पहुंच रहा था। एक बार जब कंपनी ने इसे बंद किया था तो पूरे क्षेत्र में इसका • असर पड़ा था। इसलिए इसे कंपनी बंद नहीं करना चाहती थी। कंपनी ने कोर्ट को भ्रमित भी किया कि टॉवर बंद है। लेकिन असल में टॉवर बंद नहीं किया। वह चल रहा था। तिवारी ने टॉवर में लगे मीटर की रीडिंग को बतौर सबूत के रूप में कोर्ट में पेश किया तो स्पष्ट हो गया कि कंपनी झूठ बोल रही थी।
अफसरों के चक्कर काटे, हार नहीं मानी, 4 बार हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया
अनुसार कार्रवाई करने के निर्देश दिए गए। तीसरी बार सुनवाई के लिए केस बोर्ड तक ही नहीं आया। चौथी बार फिर हाईकोर्ट में अवमानना याचिका दायर की। जिसमें न्यायाधीश ने स्पष्ट किया कि निजी भूखंड में रेसीडेंशियल इलाके में टॉवर लगाना गलत है। टॉवर हटाकर उसे साफ किया जाए और फोटो भेजे जाएं।